ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में काल सर्प दोष का निर्माण राहु एवं केतु की स्थिति पर निर्भर करता है। व्यक्ति के जन्मांग चक्र में राहु और केतु की स्थिति आमने सामने की होती है। दोनों 180 डिग्री पर रहते हैं। यदि बाकी सात ग्रह राहु केतु के एक तरफ हो जाएं और दूसरी ओर कोई ग्रह न रहे, तो ऐसी स्थिति में कालसर्प योग बनता है। इसे ही कालसर्प दोष कहा जाता है।

कालसर्प योग के लक्षण

  1. जातक को प्राय: स्वप्न में सर्प का दिखाई देना।
  2. अत्यधिक परिश्रम के बाद भी कार्यों में मन मुताबिक सफलता न पाना।
  3. मानसिक तनाव से ग्रस्त रहना।
  4. सही निर्णय न ले पाना।
  5. कलहपूर्ण पारिवारिक जीवन।
  6. गुप्त शत्रुओं का होना। कार्य में बाधा।

काल सर्प दोष के कारण जातक की कुंडली में ग्रहों की ऐसी स्थिति बन जाती है जिससे की असफल वैवाहिक जीवन की अनुभूति होती है। इस दोष का विवाहित जोड़ों पर प्रमुख परिणाम होता है और उनके बीच कई कठिनाइयां और तनाव पैदा करता है, जिससे एक वैवाहिक जीवन कठिन हो जाता है।

ज्योतिषाचार्य कृष्णा त्रिपाठी जी द्वारा काल सर्प दोष की पूजा तथा अनुष्ठान बड़ी विधि विधान द्वारा कराया जाता है और उनके कई सरे जजमान इनके द्वारा दोष का निवारण करवा कर एक सुखी व समृद्ध दाम्पत्य जीवन का निर्वाहन कर रहे है। अगर आपकी कुंडली में काल सर्प दोष है या आपको भी ऊपर दिए गए कोई भी लक्षण प्रतीत होते है तो आज ही हमसे संपर्क करे।